बाज़ार में क्लीवेज : क्लीवेज का बाज़ार / MUSAFIR BAITHA
देह हमारी है
देह के इस्तेमाल से अपनी
कमाई का अधिकार हमारा है
जाहिर है क्लीवेज भी हमारी है
इसे दिखाना
न दिखाना
कितना दिखाना
कब दिखाना
क्यों दिखाना
किसे दिखाना
हमारा प्रेरोगेटिव है
अगर आप क्लीवेज दर्शन–प्रेमी हैं
तो आपको केवल मौके की तलाश में रहना चाहिए कि
हमारी क्लीवेज का कवरेज कब कब
बाज़ार एवं बाजारू मीडिया के माध्यमों से
आपकी आँखों तक पहुँचता है
आप क्लीवेज पर कुछ मत कहिये
आप पुरुष अपने पिद्दी से पैसे के खर्च से
इसपर कुछ कह लेने का अधिकार नहीं पा सकते
हम फिल्मों में क्लीवेज दिखाते हैं
हम विज्ञापनों के लिए अपनी क्लीवेज का प्रदर्शन करते हैं
वहां हमारे लिए बेशुमार पैसे हैं
और आपके लिए बहुत थोड़े पैसे के खर्च पर
इसे देखने का बारम्बार सुख लेने के मौके
अब आप यह मत कहने लगिएगा कि
आपके चंद ओस की बूंद से थोड़े पैसों से जरूर
हमारी दौलत का घड़ा भरकर उफन आता है
हम खूब समझते हैं कि क्लीवेज का मोल तभी तक है
जबतक वक्ष उभार को अक्ष से वस्त्रहीन कर
बाजार में बेचने की इजाजत नहीं है
आप पुरुषो! अभी वस्त्र-मुक्त क्लीवेज अंश एवं वक्ष परिधि संधि के
इर्द गिर्द मुक्त स्पेस पर ही नजर ठहरा कर काम चलाइये
आप जब हमारे इंडोर्समेंट के बिना हमारी क्लीवेज पर
कुछ कहेंगे तब स्त्री अधिकार विरोधी कहे तो जाएँगे ही
’बॉडी शेमिंग’ करने के अपराधी भी करार दिए जाएंगे और
दकियानूस और चुप-सुप क्लीवेज निहारने के गुनहगार भी
क्लीवेज दिखाना जब हम फेमिनिस्ट स्त्रियां जरूरी समझते हैं
तो देखना भी थोड़े ही जरूरी हो जाता है
सरकार जब शराब, सिगरेट और तम्बाकू के अन्य वेरिएंट्स
बेचती है तो इसका यह मतलब थोड़े ही है कि इन्हें आप ख़रीदे ही एवं इनका पान करके ही दम लें
वे तो डिस्क्लेमर की तरह राइडर के साथ बिकने की मंजूरी पाते हैं
और आखिर, इन्द्रिय निग्रह भी तो कोई सांस्कृतिक आमद है, चीज़ है
पुरानी संस्कृतियों की आंखमूंद रक्षा करना धर्म है और
नए अधिकारों के तहत नई संस्कृति रचना हमारा कर्तव्य
अब यह न कह बैठिएगा कि क्लीवेज के मामले में
शराब और तम्बाकू की तरह का कोई राइडर
क्यों न लगवाती हैं क्लीवेज उन्मुक्तता पसंद हम आधुनिकाएं
कि क्लीवेज देखना मर्द के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है!