बांच लो पाती नयन की…..
बिन तुम्हारे जो गुजारी,
रैन ‘बेचारी’ विरहन की।
शब्द वर्णन को नहीं हैं,
बांच लो पाती नयन की।।
स्वांस का आवागमन भी,
जब दुरूह लगने लगे।
रंग सब बेरंग-केवल,
बोझ रूह लगने लगे।
मान लो पतझड़ अवस्था,
हो चुकी जैसे चमन की।
बांच लो पाती नयन की।।
पुष्प बिन खुशबू अधूरे,
बिन कली मधुकर फिरें।
आगमन ‘मधुमास’ हो,
झर-झरके झरने निर्झरें।
लौट आए पहले-सी ही,
सीरत मन-उपवन की।
बांच लो पाती नयन की।।
फिर मुझे पहले-सी ,
प्रीतम प्रीत देदो।
हार के सब वार दूँ,
वह जीत देदो।
फिर सदा बन के रहूँ,
दासी चरन की।
बांच लो पाती नयन की।।
मन-मगन मनुहार,
करता है समर्पण।
अब पिया-सब कुछ,
करूं तुझको मैं अर्पण।
मेरे हिरदे में महक,
भर दो सुमन की।
बांच लो पाती नयन की।।
हे पिया!सह-भाव,
अंगीकार कर लो।
अपनी वामांगी मुझे,
स्वीकार कर लो ।
हो रहूँ साक्षी सदा,
हिरदय-हवन की।
बांच लो पाती नयन की।।
आपके ही “तेज” से,
महके मेरा मन।
हो समर्पित आपको,
तन,मन-ओ जीवन।
एक-कर दूरी मिटा दो,
देह-तन की।
बांच लो पाती नयन की।।
रचना : तेजवीर सिंह ‘तेज’