बहुत दहेज में क्यूँ मालो-ज़र नहीं आया
सफ़र शुरू भी हुआ हमसफ़र नहीं आया
तलाश ख़ूब किया वो नज़र नहीं आया
उसे करी भी ख़बर वो मगर नहीं आया
इसी में हो भी गई दोपहर नहीं आया
अभी सुनी है ख़बर हादसा हुआ कोई
गया था सुब्ह को पर शाम घर नहीं आया
इधर तो आग लगी थी उसी के घर में ही
ख़बर ये सुन के भी वो बेख़बर नहीं आया
इसी बिना पे बहू को जला भी देते हैं
बहुत दहेज में क्यूँ मालो-ज़र नहीं आया
ज़रा भी देर को ‘आनन्द’ अब ठहरना नहीं
अभी तो और है चलना शिखर नहीं आया
डॉ आनन्द किशोर