Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Jun 2023 · 1 min read

बहरों तक के कान खड़े हैं,

बहरों तक के कान खड़े हैं,
हर दिन तीव्र हो रहा शोर।
फिर मेनका हुई है प्रस्थित,
विश्वमित्र के मठ की ओर।।
अब “बच के रहना रे बाबा, तुझ पे नज़र है” वाला गीत याद आ रहा है, भक्त-मंडली को। जय बाला जी महाराज की।।

🙅प्रणय प्रभात🙅

1 Like · 245 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कोमल चितवन
कोमल चितवन
Vishnu Prasad 'panchotiya'
आधुनिक युग और नशा
आधुनिक युग और नशा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
शिवाजी गुरु समर्थ रामदास – पंचवटी में प्रभु दर्शन – 04
शिवाजी गुरु समर्थ रामदास – पंचवटी में प्रभु दर्शन – 04
Sadhavi Sonarkar
समीक्षा- रास्ता बनकर रहा (ग़ज़ल संग्रह)
समीक्षा- रास्ता बनकर रहा (ग़ज़ल संग्रह)
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
रक्षक या भक्षक
रक्षक या भक्षक
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
"लू"
Dr. Kishan tandon kranti
बेजुबान तस्वीर
बेजुबान तस्वीर
Neelam Sharma
विश्व कप
विश्व कप
Pratibha Pandey
बेशक हम गरीब हैं लेकिन दिल बड़ा अमीर है कभी आना हमारे छोटा स
बेशक हम गरीब हैं लेकिन दिल बड़ा अमीर है कभी आना हमारे छोटा स
Ranjeet kumar patre
अपराह्न का अंशुमान
अपराह्न का अंशुमान
Satish Srijan
निकट है आगमन बेला
निकट है आगमन बेला
डॉ.सीमा अग्रवाल
यही तो मजा है
यही तो मजा है
Otteri Selvakumar
“जिंदगी की राह ”
“जिंदगी की राह ”
Yogendra Chaturwedi
भीड़ में खुद को खो नहीं सकते
भीड़ में खुद को खो नहीं सकते
Dr fauzia Naseem shad
मेरे स्वयं पर प्रयोग
मेरे स्वयं पर प्रयोग
Ms.Ankit Halke jha
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
वो ज़माने चले गए
वो ज़माने चले गए
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
दिन में तुम्हें समय नहीं मिलता,
दिन में तुम्हें समय नहीं मिलता,
Dr. Man Mohan Krishna
मैं अगर आग में चूल्हे की यूँ जल सकती हूँ
मैं अगर आग में चूल्हे की यूँ जल सकती हूँ
Shweta Soni
लोगों के दिलों में बसना चाहते हैं
लोगों के दिलों में बसना चाहते हैं
Harminder Kaur
नया साल
नया साल
'अशांत' शेखर
नैन फिर बादल हुए हैं
नैन फिर बादल हुए हैं
Ashok deep
छलते हैं क्यों आजकल,
छलते हैं क्यों आजकल,
sushil sarna
फागुन
फागुन
पंकज कुमार कर्ण
वो काजल से धार लगाती है अपने नैनों की कटारों को ,,
वो काजल से धार लगाती है अपने नैनों की कटारों को ,,
Vishal babu (vishu)
Three handfuls of rice
Three handfuls of rice
कार्तिक नितिन शर्मा
तुम मुझे देखकर मुस्कुराने लगे
तुम मुझे देखकर मुस्कुराने लगे
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
माँ का निश्छल प्यार
माँ का निश्छल प्यार
Soni Gupta
*मालिक अपना एक : पॉंच दोहे*
*मालिक अपना एक : पॉंच दोहे*
Ravi Prakash
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
Loading...