बहरूपिया
” बहरूपिया ”
जीवन का रंगमंच, हर रोज़ नए रूप में,
दिखाता है बहरूपिया, अपनी कथा के रुप में।
पहले वो व्यक्ति, बच्चा बनकर,
दुनिया के साथ खुशियों का ख़्वाब देखता है।
फिर जवान होकर, जुआ का रंग बदलता है,
जिंदगी के दौर में, अपने आप को खोता है।
समय के साथ, एक बूढ़ा बन जाता है,
धीरे-धीरे जीवन की कठिनाइयों को सहता है।
अब वह बहरूपिया, अपने अंत के करीब है,
ख़ुद को पुराने सवालों के साथ ढूंढ़ता है।
बहरूपिया वाद है, जीवन की यही सच्चाई,
हम सभी एक बहरूपिया, अपने अंत के पास हैं।
हर रोज़ अपने नए रूप में हम ख़ुद को ढूंढ़ते हैं,
इस खेल में, हम सभी अपनी कहानी बुनते हैं।।
” पुष्पराज फूलदास अनंत “