बस ! एक दिन का प्यार …
बस ! एक दिन का प्यार है,
इसे प्यार ना समझो ।
मिल गया एक दिन सम्मान,
उसे सम्मान न समझो ।
मिले हैं जो तोहफे आज के दिन,
उसे इनका एहसान समझो ।
उमड़ रहा है क्यों प्यार इतना आज ,
इसका भेद समझो ।
इतना महत्व आज ही क्यों ,कैसे ?,
जरा कारणों को समझो ।
आज का दिन गुजर जाने दो ,
फिर स्वयं समझ जाओगे ।
गर समझ चुके हो तो जाग जाओ ।
श्रवण कुमार जैसी संतान की उम्मीद ,
इस कलयुग में ना करो ।
माता पिता की निस्वार्थ सेवा ,उनके प्रति श्रद्धा ,
सब किताबी बातें रह गई ।
अब संतान बहुत आधुनिक ,व्यवहारिक और,
भावना विहीन हो गई ।
देश का पश्चमीकरण हुआ है भाई !
भारतीय संस्कार, संस्कृति सभ्यता ,शिष्टाचार
सब पुरानी बातें हो गई ।
ऐसा न होता तो देश में हर जगह वृद्धाश्रम
ना खुले होते।
अन्यथा !
प्रेम ,आदर ,ध्यान और महत्व आदि जैसे
भाव एक ही दिन क्यों हमेशा क्यों नहीं?
पितृ और मातृ दिवस मात्र एक ही दिन क्यों ,
रोज क्यों नहीं !!
हे आदरणीय वृद्धजन ! भावनात्मक दबाव में
मत आओ ,तनिक विचार करो।