बसंत
कुण्डलिया
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ऋतु बसंत की आ गई, महके सभी अरण्य।
पशु पक्षी और वृक्ष भी, हुए सभी चैतन्य।
हुए सभी चैतन्य, प्रफुल्लित हुई दिशाएं।
नई कोंपलें खूब, डालियों पर हर्षाएं।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, नहीं सीमा अनंत की।
वन कानन हर ओर, धूम है ऋतु बसंत की।
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पर्वत घाटी हर जगह, वृक्ष रहे हैं झूम।
वन कानन शोभित सभी, लिए बसंती धूम।
लिए बसंती धूम, रंग फूलों पर बिखरे।
भोर समय में खूब, विपिन देखो सब निखरे।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, प्रदूषित कभी करें मत।
रखें हमेशा स्वच्छ, नदी वन घाटी पर्वत।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य