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9 Dec 2022 · 1 min read

बसंत ऋतु में

** गीतिका **
~~
बसंत ऋतु में कुदरत का जब, रूप बदलने लगता है।
खिला खिला हर दृश्य देखकर, हृदय मचलने लगता है।

डूब न जाए आकर्षण में, चंचल है मन यह कितना।
लक्ष्य स्मरण कर मुश्किल पल में, पथिक सँभलने लगता है।

आस किरण जब हो ओझल तो, बिल्कुल मत घबराना तुम।
जब हटता आवरण धुंध का, सूर्य निकलने लगता है।

बूंद पिघलती शबनम की जब, सुन्दर कलियां खिल उठती।
कोमलता से भाव स्नेह का, मन में पलने लगता है।

लोभ मोह माया के बंधन, तोड़ सुपथ पर बढ़े चलें।
धर्म मार्ग पर ही चलने से, भाग्य बदलने लगता है।

संयम खोना भी अच्छा है, लेकिन तो हर बार नहीं।
कभी कभी यह मन खुशियों में, व्यर्थ उछलने लगता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)

3 Likes · 2 Comments · 156 Views
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