बरसात
नभ में देख
चहुं दिश बादल
खुशी छा गई
लगने लगा
बरखा की धमक
अब आ गई।
बंजर जमीं
में नन्हें नन्हें पौधे
उगने लगे
कीट पतंगें
तरह तरह के
उड़ने लगे।
सुहागिनें भी
सजना के निमित्त
सजने लगी
विरहनी भी
देख वर्षा की छटा
जलने लगी
चातक गण
स्वाती बूंद की प्यास
संजोने लगे
हम सब भी
पावस के फुहार
पिरोने लगे
दादुर, मोर
पपीहा विनोद से
झुमने लगे।
सकल जग
वर्षा की बौछार को
चूमने लगे