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15 Jun 2021 · 1 min read

बरसात

किससे कहूँ जग में

व्यथा अपने ह्रदय की

और किस अज़ीज़ पर

यकीन करूं अब मैं

मौन निमंत्रण

भेजा जब भी

ठुकराया जग में

उतनी ही बार गया !

जीवन की बरसात में

बिन अपनों के साथ से

खिलते उपवन में ही

हुए पत्ते सब पीले

अपनों की खातिर

उन दरख्तों ने ही

पतझड में खुद से

जुदा कर दिया !

गलती कर बैठे

जो खुद को कर दिया

जीवन में राख

अपनों की खातिर

दुश्मन की तलाश

अब तो की जाए

अपनों की बेरुखी से

मन भर चला है !

काँटों की तरह हुआ

इश्क में साथ तेरा

बख्शी है इज्ज़त तुम्हे

नजरों में अपनी लेना

परख इक बार कि

हक किसने दिया था

सनम इस जहां में तुझे

रूह्कशी का हमारी !

अक्स की तसदीक है

बमुश्किल आज के दौर में

खुशियों की बरसात

पराए भी ज़िन्दगी में

अक्सर कर जाते हैं

जबकि अजीज़ रहते मशगूल

बिसात काँटों की

हरपल बिछाने में !

: मुनीष भाटिया

585 स्वस्तिक विहार, जीरकपुर, चंडीगढ़ I
9416457695

munishbhatia122@gmail.com

4 Likes · 1 Comment · 420 Views
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