बरसात
बरसात की कहूँ कहानी
सुंदर सुखद सुहानी है ,
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
बरसात आने का अनुमान
आसमान कह देता है,
बादल गरजें उमड़ घुमड़
बिजली खूब ड़राती है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
तेज हवा भी चुप हो जाती
घनघोर घटा छा जाती है,
काले बादल पानी लाते
हवा संग में दीवनी है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
पहले रूप ड़रावन लगता
रिमझिम रूप सुहाता है
हर्षित हो जाता किसान भी
फसलें खूब लगाता है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
पानी पाते ताल तलाई
नदियाँ भी इठलाती हैं,
मेंढक झिगुर गाना गाते
धरती मन मुस्काती है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
हरे भरे हो वृक्ष झूमते
पिलकन मौर सजाती है ,
हरी घास चूनर से शोभा
सबके मन को भाती है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
वन उपवन में मोर नाचते
पपीहा बीन बजाता है,
फुदक रही आॅगन गौरैया
सूरज कुछ शरमाता है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
अमृत धारा लेकर बरखा
धरती को खूब नहाती है,
माटी का चंदन रूप बना
मानव को तिलक लगाती है ।
धरती माॅ की गोद भराई
बरसात से ही होती है ।
राजेश कौरव सुमित्र