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30 May 2021 · 1 min read

बरसातें

बचपन की वो बरसातें,भूले नहीं हैं हम।
कागज़ की छोटी कश्ती , दिन भर चलाते हम।
न छाता चहिए था, न रेन कोट कोई।
छम – छम बरसता पानी,कॉपी पुरानी कोई।
स्कर्ट टॉप बदली फिर से फ्रॉक भिगोई।
डांटा तनिक भी मां ने ,तो जार जार रोई।
मां की सभी शिकायत पापा से करते थे हम।
कागज़ की छोटी कश्ती, दिन भर चलाते थे हम।
छोटा सा प्यारा छाता पापा ने था दिलाया।
घनघोर बारिशों में छाता बहुत घुमाया।
तन मन सारा आतप बरसात में मिटाया।
जामुन वो काली काली शहतूतों ने लुभाया।
मल्हार गाकर झूलना, भूले नहीं हैं हम।l
कागज़ की छोटी कश्ती, दिन भर चलाते हम।
बरसातों से हिल मिल कर ,फिर मैं हुई जवां।
रिमझिम फुहारों में थी , प्रीत पी की भी जवां।
नन्हे से ख्वाब भी मेरे ,उड़ते थे पंख लगा।
बारिश की वो रिमझिम पी के घर की हवा।
वो मां की गुंजिया , सिंदारा भूले नहीं हैं हम।
कागज़ की छोटी कश्ती दिन भर चलाते हम।
बचपन की वो बरसातें, भूले नहीं हैं हम।

3 Likes · 3 Comments · 440 Views
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