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14 Nov 2016 · 1 min read

बरगला ये हवा रही है मुझे साथ अपने बहा रही है मुझे

बरगला ये हवा रही है मुझे
साथ अपने बहा रही है मुझे
———————————————-
ग़ज़ल
क़ाफ़िया- आ, रदीफ़- रही है मुझे
वज़्न-2122 1212 22/112
अरक़ान-फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
बहर- बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
———————————————-
बरगला ये हवा रही है मुझे
साथ अपने बहा रही है मुझे
———————————————-
रास आती वफ़ा रही है मुझे
बात इतनी सता रही है मुझे
———————————————-
रौशनी क़ैद है चराग़ो में
ज़िंदगी दे ख़ता रही है मुझे
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कौन दिल के करीब से ग़ुजरा
याद फिर उसकी आ रही है मुझे
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रातरानी महक महक घर की
रातदिन क्यों सता रही है मुझे
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ज़ुल्फ़ कोई सुखा रहा छत पर
एक बदली बता रही है मुझे
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सर झुकाये खड़ा हुआ हूँ मैं
भूख क्या दिन दिखा रही है मुझे
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ज़िद नये इन्क़िलाब की गुलशन
अन्दर अन्दर जला रही है मुझे
———————————————-
राकेश दुबे “गुलशन”
14/11/2016
बरेली

546 Views
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