बन जाने दो बच्चा मुझको फिर से
नहीं, मुझको नहीं बनना बड़ा,
नहीं चाहिए मुझको दौलत,
और नहीं चाहिए इतनी सुविधा,
नहीं चाहिए अमीरी की यह चकाचौंध,
नहीं चाहिए ये सौंदर्य प्रसाधन,
ये बहुमूल्य कपड़े पहनने को,
सुकून मिलता है मुझको तो,
बस्ती के मेरे दोस्तों के साथ,
बन जाने दो मुझको बच्चा फिर से।
नहीं चाहिए मुझको,
यह महलों का सुख,
मेरी सेवा में खड़े सेवक,
मेरी रक्षा में लगे रक्षक,
ऐसे स्वर्णजड़ित पलंग,
ऐसे मखमली बिस्तर,
मुझको तो खेलना है,
इस सुनहरी मिट्टी में,
बन जाने दो मुझको बच्चा फिर से।
खोल दो मेरे पैरों की जंजीरों को,
चलने दो मुझको पैदल जमीं पर,
दम निकलता है मेरा वास्तव में,
इन कृत्रिम हवा और हंसी में,
मत अलग करो मुझको तुम,
उन गरीब और यतीमों से,
जिनमें दिखता है ईश्वर सच में,
बन जाने दो मुझको बच्चा फिर से।
जिनमें नहीं होता कोई लालच,
नहीं होता जिनमें कोई पाप,
होता है जिनका हृदय पवित्र,
जो नहीं करते भेदभाव कभी,
जाति- धर्मों और भगवान में,
जो नहीं होते झूठे और धोखेबाज,
जो होते सच्चे और ईमानदार,
बन जाने दो मुझको बच्चा फिर से।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)