बदल लिया ऐसे में, अपना विचार मैंने
बदल लिया ऐसे में, अपना विचार मैंने।
होना चाहिए था जो, वह नहीं पाया मैंने।।
बदल लिया ऐसे में———————–।।
मैंने हर महफ़िल में रंग, उनका ऐसा ही देखा।
बन गए ऐसे अजनबी, जैसे पहले नहीं देखा।।
मेरी मुफलिसी को उन्होंने, पहले क्यों नहीं देखा।
हिकारत उनकी आँखों में, जब देखी मैंने।।
बदल लिया ऐसे में————————-।।
बहुत अच्छी लगती थी, साधुओं की संगत मुझको।
उनकी खुदा परस्ती पर,बहुत यकीन था मुझको।।
लेकिन महलों में रहते मिले, ऐसे फकीर मुझको।
देखे जब इनके रंगीन मिजाज, और शौक मैंने।।
बदल लिया ऐसे में————————–।।
भूलकर भी की नहीं मैंने, उनकी बुराई किसी से।
उनको कहता था अपना साथी, मैं हर किसी से।।
करते रहे मेरी बदनामी, लेकिन वो हर किसी से।
मेरी शराफत का फायदा, उठाते जब देखा मैंने।।
बदल लिया ऐसे में————————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)