*बदल रहा तसवीर अपनी*
कलम की लकीर से लिख रहा
तकदीर अपनी,
कर्मों की शमशीर से बदल रहा
तदवीर अपनी|
मन का – मनका बिखर रहा
अनवरत संसार में,
‘मयंक’ मोती पिरो-पिरो बदल रहा
तसवीर अपनी|
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’
कलम की लकीर से लिख रहा
तकदीर अपनी,
कर्मों की शमशीर से बदल रहा
तदवीर अपनी|
मन का – मनका बिखर रहा
अनवरत संसार में,
‘मयंक’ मोती पिरो-पिरो बदल रहा
तसवीर अपनी|
✍ के.आर.परमाल ‘मयंक’