* बदले-बदले से तौर है *
* बदले-बदले से तौर है *
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तेरे तो मन में चोर है,
बदले – बदले से तौर है।
कैसे बोले वो क्या घटा,
मुखड़े पर ओढ़ी सौर है।
मतलब मे अंधे खो गए,
कानन में फिरते ढोर हैँ।
कोई कोने में रो रहा,
कानो मे पड़ता शोर है।
यादों तड़फाती रात-दिन,
तन मन देता झकझोर है।
आँसू के बादल छाये रहे,
ख्यालो मे बीता दौर है।
देखूँ किनता दिखता नहीं,
औझल नजरों से छोर है।
जीने का सूरज छिप रहा,
अंधेरा मन में घोर है।
भूली बिसरी यादें घूमती,
पिछली बातों पर गौर है।
ऑंखें तो भारी नींद बिन,
दुखदायी बोझिल भोर है।
मानसीरत छाया बोझ सा,
यूँ दिल पर भारी जोर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)