बदलाव
रूख रुक नहीं रहा है
दूसरों को जिम्मेदार ठहराने का
थोडे बहुत जिम्मेदारी लो बेटा.
वक्त शादी का, नजदीक आ रहा है.
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आयोजन के मर्म तो देखो,
जो निसर्ग भेज रहा है,
वो भी स्वीकार नहीं,
मुंह के टूटे दांत,
फिर भी बालों में डाई
करवा रहा है.
आई उम्र फूफाजी कहलवाने की.
फिर भी रोब
जीजा जी,
वाले जमा रहा है.