बतलाएँ ताबूत
बतलाएं ताबूत इक, दूजा कहे कलंक ।
लगे मानसिकता हुई,इनकी पूरी रंक।।
इनकी पूरी रंक, अक्ल भी गई है मारी ।
मति भी अपनी आज ,बेच खाई है सारी ।
लोकतंत्र होगा भला, कैसे फिर मजबूत ।
संसद को ही नासमझ, बतलाएं ताबूत ।।
रमेश शर्मा
बतलाएं ताबूत इक, दूजा कहे कलंक ।
लगे मानसिकता हुई,इनकी पूरी रंक।।
इनकी पूरी रंक, अक्ल भी गई है मारी ।
मति भी अपनी आज ,बेच खाई है सारी ।
लोकतंत्र होगा भला, कैसे फिर मजबूत ।
संसद को ही नासमझ, बतलाएं ताबूत ।।
रमेश शर्मा