बच्चो की कविता -गधा बड़ा भोला
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मैं हूँ एक गधा, सब करते मजाक,
पर जानता हूँ मैं, इंसान का हर फलक।
वो कहता है मुझको, “मूर्ख” और “अज्ञानी”,
पर देखूं मैं, उसकी चालाकी और कहानी।
कभी बोझा ढोता, खेतों में दिन-रात,
कभी चलता सड़कों पर, सहता धूप की बात।
वो समझता है मुझे, बस मेहनत का जानवर,
पर मैं भी जानता हूँ, उसका हर शगूफ और जतन।
इंसान कहता है, “गधा बड़ा भोला,”
पर मेरे दिल में भी है, भावों का झोला।
कभी सहलाए, कभी मारे छड़ी,
पर मैं भी देखूं, उसकी हर कड़ी।
मैं सोचूं, इंसान कितना है चतुर,
अपने स्वार्थ के लिए, मुझे करे मजबूर।
पर उसकी नजरें, जब प्यार से झुकतीं,
मेरे दिल में भी, स्नेह की लहरें उठतीं।
इंसान के बिना, मेरा जीवन अधूरा,
पर उसकी दुनिया भी, है मुझसे पूरा।
वो मुझ पर हँसता, पर मैं भी मुस्कराता,
उसके हर रूप को, मैं पहचान पाता।
मैं जानता हूँ उसकी सोच, उसकी माया,
पर चाहूं मैं, बस थोड़ी सी दया।
मेहनत मेरी, उसकी दुनिया सजाए,
पर मेरा भी दिल, थोड़ा प्यार पाए।
तो इंसान, सुनो मेरी बात,
मेरी मेहनत का दो, थोड़ा सा मान।
मुझे समझो, मुझसे भी लो सीख,
हम दोनों का रिश्ता, हो जाए अनमोल और अनोखा।
गधा हूँ, पर दिल मेरा है सच्चा,
तुम्हारे बिना मेरा, और मेरे बिना तुम्हारा,
इस रिश्ते की डोर, रहे हमेशा मजबूत,
प्यार और सम्मान, यही हमारी सच्ची मूरत।