बचपन
बचपन
पागल पागल एक हो गये ,मिलकर कर दिए पागलपन ,
दिल की बात है सायक फिर याद आ गया वो बचपन ,
साईकिल की वो रेश ,घंटियों की टनटना टन,
महफ़िल वाली शाम गली में घूमता तन मन ,
किताबी बोझ तले दबकर, मनाते छुट्टियाँ खुलकर ,
शरारते निगाहों की , देखना चाहे उसे जी भर ,
गानों के बिखरे बिखरे शब्द हौसला देते थोड़ी उमंग ,
अन्ताक्षरी का खेल ,दिवाली होली के वो रंग ,
गायब कहाँ हो गये सायक वो लेकर खुशियाँ संग ,
जिनके पागलपन ने फिर याद दिलाया था वो बचपन ,
जय श्री सैनी ‘सायक ‘