बचपन
बचपन
मैं हूँ एक अभागा बचपन।
समाज द्वारा त्यागा बचपन।।
कूङे से रोटी बीन रहा,
भूखी नींद से जागा बचपन।।
भूख गरीबी का पहनावा,
कहें सभी ये नागा बचपन।।
राहें देखूं इन्कलाब की,
शोषण ने है दागा बचपन।।
कब तक रहूँगा मैं बेगौर,
टूटा धर्म का धागा बचपन।।
सिल्ला खून औ आंसू लिखता,
भीख मांगने लागा बचपन।।
-विनोद सिल्ला©