बचपन की बारिश
वर्षा की फुहारों में मन करता है
रिमझिम के गीत गाते बिना छाते सडको पर दौड़ने का
घटाओ से घिरे बादलो को छूने का
अठखेलिया करती नटखट पवन के संग खेलने का
मेघ गर्जन करते बादल,चुंधियाती बिजलियों के
साथ धरती पर बिछी हरियाली की चादर को छूने का
घने अंधियारे मे मन को रोमांचित करने का
मंद मंद अलसाई धूप को गले लगाने का
आकांषये तो बहुत है बचपन की यादों लिपटने का
वास्तविक जीवन रोकता है उन्मुक्त जीवन जीने को
कितना खोया है बड़े हो कर
डॉ सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल