बंधन
बंधन
बंधा हुआ इंसान
अनेक बंधनों में
जिन बंधनों ने
खत्म कर दिया
इंसान का व्यक्तित्व
जाति-धर्म
भाषा-क्षेत्र
व अन्य बंधनों को ही
मान लिया इसने
समूचा व्यक्तित्व
ताउम्र नहीं तोड़ पाया
इन बंधनों को
अगर तोड़ पाता
तो हो जाता मुक्त
यही है
वास्तविक मुक्ति
-विनोद सिल्ला©