बंद मुट्ठी में हासिल फ़क्त इंतज़ार के कुछ नही!
इस कदर चाहूँ तुझे अब मेरा दम निकल जाये
देखूँ,सोचूँ,तुझे पाऊँ अब ये अरमान निकल जाये
वो तुझे देखा जब नायाब संगमरमर सा तराशा हुआ
मुमताज़ को सोच कर शाहजहाँ का दम निकल जाये
बंद मुट्ठी में हासिल फ़क्त इंतज़ार के कुछ नही
क्या पता उस इंतज़ार में ही वक्त निकल जाये
सियासत दाँ को मतलब अब सिर्फ सियासत से
भूखी प्यासी आवाम की चाहे दम निकल जाये
बन्द कमरा और ये चाहदीवारी कुछ सुलग सा रहा
जिंदगी में धुँआ कंही न कंही से अब निकल जाये
बहुत बेचैन निगाहों की निगहबानी ना करिये
कँही आँखो से पानी ना अब निकल जाये
जिंदगी ने क्या कम काँटे बिछाये राहों पर
तो क्या चलो हँसते हंसते इससे निकल जाये
हमेशा घने अँधेरो में उम्मीदी हैं छाई रहती,आकिब’
कँही उजाले के इंतज़ार में वक्त ना निकल जाये!!
®आकिब जावेद