बंद कर बत्ती दिमागी आर्थर डे
बंद कर बत्ती दिमागी, जो कर रही पर्यावरण क्षरण
हरी भरी धरती का चीर क्यों, नित्य करता है हरण
बंद कर बत्ती अभागी, नित नए अंधे विकास की
बंद कर बत्ती ये वागी, अंधी दौड़ और रफ़्तार की
कितना खोदेगा धरा को, कितना तोड़ेगा पहाड़
कितना गला घोंटेगा नदी का, क्यों रहा कचरे को गाड़
कितना विनाश करेगा,हरे भरे जंगलों नीले समंदरो का
जलीय और जंगली जीवों का
कितना घोलेगा हबाओं में जहर,
क्यों बरपा रहा है पर्यावरण पर कहर
क्यों मिटा रहा है जैव विविधता
संभलकर कर चल,बदल अपना रास्ता
बंद कर अनंत इच्छाओं की बत्तियां
दुस्वार न कर अपनी ही जिंदगियां
चल पर्यावरण के संग संग, क्यों पी रखी है नासमझी की भंग
खबरदार एक दिन,धरा पर मिट जाएगा जीवन
न हबा न पानी और न भोजन
केबल मौत,मरण और मरण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी