बंदे सोच जरा जीवन में
बंदे सोच जरा इस दिल में, जीवन पाया है किस तन में
कितनों को खुशियां बांटी, किस किसको दुख पहुंचाया
कितना धरती को महकाया, कितना किया सफाया
तू सोच जरा जीवन में, बंदे क्यों आया इस तन में
कितना तुमने खुद को जाना, कितनी दुनिया जानी
कितना लिया जग से तुमने, क्या नहीं उसे लौटा जाना
अब सोच जरा इस ढंग में, मैंने क्या पाया इस तन में
भूख निद्रा अन्य क्रियाएं, पशु पक्षी भी करते हैं
क्या मानव होकर, मानव जैसी करनी भी हम करते हैं
जरा सोच समझ जीवन में, बंदे क्यों आया इस तन में
कितना अदा किया शुकराना, कितना फर्ज निभाया
कितना कर्जा लिया कौम से, कितना कर्ज उतारा
फर्ज कर्ज का यह हिसाब, कर ले इस मानव तन में
बंदे सोच जरा जीवन में
प्रेम की गंगा छूट न जाए, डोर सांस की टूट न जाए
फिर इस तन में आए न आए, तुम जतन करो जीवन में
बंदे सोच जरा जीवन में