फोन:-एक श्रृंगार
फोन:-एक श्रृंगार
अब कहां दिखती है बच्चों के हाथों में,
क्रिकेट का एक किलोग्राम का बल्ला,,
या पुस्तकों से भरा झोला,,,
अब तो बच्चों के हाथों में दिखता है,,,,
मात्र 150 ग्राम का फोन,,,,,,
उसी में उसकी सारी पढ़ाई,,उसी में उसका सारा खेल होता है,,,,,,,
अब बच्चे नहीं मिलते एक दूसरे से जी,अब उनका आपस में कहां मेल होता है।।
अब वो दिन पुराने हो गए,जब महबूब की एक झलक पाने के लिए,,
दिन भर उसका चक्कर लगाया जाता था,अगर ख़ुद से बात ना बन पाती,,,,,,
तो गलियों में मौज़ूद छोटे बच्चों को,इस काम पर लगाया जाता था,,,,,,
अब इतना समय किसके पास है,,अब तो फोन हर हाथ के पास है,,,,,,
इश्क़ क्या है,,,,,,,इश्क़ किससे है,,,,,,,
ये शायद उससे ज़्यादा,,,,,,,उसके फोन को अहसास है।।
आज हर किसी को,फोन से प्यार है,,
फोन ही हाथों का श्रृंगार है।।