****** फूलों से चोट खाई है *******
****** फूलों से चोट खाई है *******
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पत्थर से बचकर फूलों से चोट खाई है,
मुश्किल से कलियों से जान बचाई है।
देख कर अमरस मक्खियाँ मंडराती हैँ,
दूध पर ही तो सदा से आती मलाई है।
शान शौकत तो दो दिन की कहानी है,
इंसान ही इंसान की मर्ज की दवाई है।
गैर के आंचल। में गम की खिदमत है,
मौत की सजा अपनों ने ही सुनाई है।
यूँ ही मिलती नहीं मोहब्बत्त मनसीरत,
बड़ी शिद्द्त से प्रेम की दौलत कमाई है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)