फूटे आंख न सुहाती ।
हम कुछ ऐसे उनसे कहे ।
कि वे मुझपर नाराज हो बैठे ।
ऐतराज कर बैठे ।
सच्चाई उनके मुख पर कहां ।
तो उन्हे फूटी आंख न सुहाई ।
ये कैसी ईश्वर ने दुनिया बनायी ।
जहां नेताओ के चापलूस ।
बहुत है ।
वे गाए तो राग मिंया मल्हार ।
हम गाए तो बेसुरा बेकार ।
सब मतलबी है ।
ये शरीर भी अपनी सगी नही है ।
जो सदा हमको ठगी है ।
शारीरिक शक्तिया कुछ भी नही होती ।
मानसिक शक्तियो से ही शारीरिक शक्तिया उत्पन्न होती है ।
सबके अंदर वो अध्यात्म की ज्योति है।
पर कस्तूरी मृग जैसे उन्हे खबर ही नही होती ।
आनंद सिंधु मध्य तन वासा ।
बिन जाने कत मरत पियासा ।
एक छोटा सा मन शरीर को ।
अपने मर्जी से चलाता है ।
सिद्धी मिलेगी तब जब मन मेरा गुलाम हो ।
हम उसके नही ।
दुनिया जितने भी अच्छे-बुरे कार्य होते है ।
सब मन की प्रेरणा से होते है ।
छोटे
जिस दिन समझ गए आप ।
अपने आप को ।
उसी दिन समझ जाएंगे दुनिया के नाप को ।
Rj Anand Prajapati