फिर भी कमबख़्त दिल तुझपे आये
इश्क़ में अश्क़ ही तो बहाये
फिर भी कमबख़्त दिल तुझपे आये
बेवफ़ाई है फ़ितरत तुम्हारी
फिर भी दिल गीत उल्फ़त के गाये
जानता हूँ कि ज़ालिम बड़े हो
तीर नैनों से क़ातिल चलाये
रात विरहा की कटती नहीं है
याद तेरी जिया को जलाये
भीड़ में अजनबी हूँ यहाँ मैं
तुम कहाँ मुझको ले के ये आये
आरज़ू थी मुझे महफ़िलों की
ग़म के बादल फ़क़त अब तो छाये