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17 Apr 2017 · 1 min read

फिर नादानी रोज

विधा- गीतिका, आधार छंद -दोहा (24 मात्रा ,13-11 पर यति, अन्त में 21 अनिवार्य ), समान्त- आनी, पदान्त- रोज .
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आतीं अब भी स्वप्न में, दादी-नानी रोज,
और सुना जातीं हमें, एक कहानी रोज ।
*
माँ की हमको बात वह, अक्सर आती याद,
कहती – पंछी को दिया, करना पानी रोज ।
*
उनको ज़रा सँभालिये, लेते झगड़ा मोल,
पहले लड़ते बाद में, मुँह की खानी रोज ।
*
इच्छाओं की पूर्ति का, जाना हमने मर्म,
पैर सदा उघड़े रहे, चादर तानी रोज ।
*
आदत कैसी पड़ गयी, तुझको देख ‘हरीश’,
सायं सुधरा, भोर में, फिर नादानी रोज । :)
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हरीश चन्द्र लोहुमी, लखनऊ (उ.प्र.)- 9451559605
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