फिर जल उठी मानवता
जहाँ होती नारी की पूजा वहांँ रमते हैं देवता,
था वह भी युग जब भारत में यह सुस्वर था गूंजता।
कितनी भयावह विकृति आज इस समाज में आई है,
देवीस्वरूपा स्त्री पर आज पग-पग विपदा छाई है।
अरे अधर्मी किया अपराध जघन्य कैसी तेरी कुत्सित सोच,
मानवता पर कालिख पोती रिश्तों का मुंह दिया है नोच।
तेरे अघम कल्मष का दण्ड मात्र एक मृत्यु दण्ड नहीं काफी,
सौ-सौ जन्म तू फुंके अग्नि में एक मौत न है पूरी माफी।
तूने भाई-बहन के पावन रिश्ते को किया शर्मसार,
भारत की पुनीत महान संस्कृति को किया यूँ तार-तार।
जिसकी बेटी चली गई उस घर में मातम है निराशा है,
लोगों को इससे क्या लेना सेल्फी ले लो तमाशा है।
माता करे विलाप,पिता का क्रंदन करके बुरा है हाल,
पत्रकार मीडिया हैं खबरें मांगते वह पूछें बारम्बार सवाल।
सुअवसर कहीं चूक न जाएं नेता घात लगा देख रहे,
शोक व्यक्त करने के बहाने सियासी रोटियाँ सेंक रहे।
यह क्यों है दुर्भाग्य कि नारी पर हो पुनःपुनःयह वार,
क्यों समाज की है चुप्पी करके नारी पर ये प्रहार।
स्त्री ममत्व करुणा की प्रतिमूर्ति सेवा दया करे दिन-रात,
कभी सुना किसी नारी ने पुरुष को दिया हो यूँ आघात।
सज़ा वही मिले अपराधी को भी कानून से हमारा यह अनुरोध,
जिसका वीभत्स वेदना से वह गुजरी उसी पीड़ा का तुझे भी हो बोध।
तू तिल-तिल तड़प-तड़प कर करते रहना मदद की गुहार,
मिलेगा सबक कठोर कुकर्मियों की नई खेप न होगी तैयार।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©