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13 Dec 2021 · 4 min read

प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी : शालीनता से भरे प्रबुद्ध कवि

प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी : शालीनता से भरे प्रबुद्ध कवि
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उ. प्र.) मोबाइल 99976 15451
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1981 – 82 में सुंदर लाल इंटर कॉलेज, रामपुर का रजत जयंती समारोह मनाया गया । इसमें कवि सम्मेलन के लिए दो दिन का कार्यक्रम रखा गया था । पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ की हार्दिक इच्छा काका हाथरसी नाइट का आयोजन करने की भी थी। अतः पहले दिन उन्होंने काका हाथरसी नाइट तथा दूसरे दिन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन रखा । कार्यक्रम के संचालन के लिए यद्यपि भारी – भरकम शानदार आवाज के धनी श्री भगवान स्वरूप सक्सेना मुसाफिर को आमंत्रित किया गया था । उन्होंने दोनों दिन कार्यक्रमों का बेहतरीन संचालन किया । वह संचालन के मामले में माहिर व्यक्ति थे । तथापि कार्यक्रम का विस्तृत ब्यौरा तैयार करने का कार्य प्रतिभाशाली कवि तथा विद्यालय के उस समय के हिंदी प्रवक्ता (बाद में प्रधानाचार्य) डॉ चंद्रप्रकाश सक्सेना कुमुद को सौंपा गया। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के कवियों की सूची उनके परामर्श से ही तैयार हुई थी । इसमें एक नाम प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी का था । आप चंद्र प्रकाश जी के गुरु रह चुके थे तथा चंद्र प्रकाश जी आपकी बौद्धिक क्षमता तथा काव्यात्मकता से भलीभांति परिचित थे। मंच पर प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप जी की उपस्थिति ने वास्तव में कार्यक्रम को एक अनूठी गरिमा प्रदान की। प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप जी ने अपनी गहन साधना की परिचायक श्रेष्ठ काव्य रचनाएं श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत कीं तथा उन्हें भरपूर सराहना प्राप्त हुई। यह प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप जी की रामपुर के साथ एक घनिष्ठ परिचय की स्थापना थी ।
1995 में जब मेरी काव्य पुस्तक माँ (भाग 2) का प्रकाशन हुआ, तब उसके लोकार्पण के लिए किसी विद्वान को आमंत्रित करने का विचार था। चंद्र प्रकाश जी से चर्चा हुई । एक बार फिर आपने प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी का नाम सुझाया । पहली बार में ही यह तय हो गया कि चंद्र प्रकाश जी संपर्क करके महेंद्र प्रताप जी से लोकार्पण की तिथि और समय निश्चित कर लेंगे । राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर शिशु निकेतन) में कार्यक्रम संपन्न हुआ । मंच को रामपुर समाचार (हिंदी साप्ताहिक) के संपादक श्री ओमकार शरण ओम तथा श्री राम सत्संग मंडल (अग्रवाल धर्मशाला ,रामपुर) के संस्थापक गृहस्थ संत श्री बृजवासी लाल भाई साहब ने भी सुशोभित किया। कार्यक्रम की धूम मच गई । प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी के संबोधन तथा काव्य-पाठ ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।
प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप जी मुरादाबाद में के.जी.के. कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष रहे थे । रिटायरमेंट से पहले एक दशक तक उन्होंने इसी विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर भी अपनी सेवाएं प्रदान की थीं। यह एक विचित्र संयोग है कि महेंद्र प्रताप जी की कर्मभूमि मुरादाबाद रही ,लेकिन उनका जन्म 22 अगस्त 1923 को बनारस में हुआ तथा मृत्यु भी 20 जनवरी 2005 को बनारस में ही हुई।
प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी प्रमुखता से श्रृंगार के कवि हैं । प्रेम के संयोग और वियोग दोनों पक्षों को बड़ी मार्मिकता के साथ आपने अभिव्यक्ति दी है । शालीनता आपके स्वभाव का गुण है । संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग आप की विशेषता रही । काव्य मंचों पर सर्वसाधारण श्रोता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए आपने कभी भी अपनी रचनाधर्मिता से समझौता नहीं किया। आपके काव्य का जो स्तर था ,आपने उसे बनाए रखा । प्रबुद्ध श्रोताओं के समूह में ,चाहे वह एक छोटे से कमरे में हो या विशाल सभागार में ,आपने उनको अपनी रचनाओं से सम्मोहित किया। यह आपके काव्य-जीवन की सफलता का एक विशेष आयाम है। आप के निर्देशन में 22 छात्रों ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी।
आपकी रचनाओं का कोई स्वतंत्र संग्रह जीवन-काल में नहीं निकल पाया । आपकी मृत्यु के पश्चात मुरादाबाद के साहित्यकार सर्व श्री डॉक्टर अजय अनुपम ,आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई तथा सुरेश दत्त पथिक के संपादन में “महेंद्र मंजूषा” नाम से वर्ष 2006 में आप की काव्य कृतियों का एक संकलन प्रकाशित हुआ ।
प्रस्तुत है बानगी के तौर पर आपकी श्रंगार रस की दो गीत रचनाएँ:-

गीत (1)

स्वप्न में मैंने उषा की
रागिनी के गाल चूमे
और संध्या के सुनहरे
भव्य केश विशाल चूमे।
यामिनी के मधु उरोजों पर
कभी मोहित हुआ था
और अम्बर में उदित
इन तारकों के भाल चूमे
सान्ध्य रवि की भांति, सखि! अब किन्तु ढलता हूँ स्वयं मैं
राह का कांटा तुम्हारा आज हटता हूँ स्वयं मैं।।

गीत (2)

जबसे मन में नई प्रीति जागी है

ऐसी गांठ वधी जिससे
पिछले बन्धन चुपचाप खुल गये,
तरल-ताप वह चला,
कि मन के कल्मष अपने आप घुल गये, आँखों में भर गया रूप ऐसा
दुनिया का रूप खो गया,
मेरे भीतर नया जगा कुछ
विगत सदा के लिए सो गया,

मेरी झोली खाली करके
विकल अकिंचनता भर दी है
तो लगता है, मुझे बनाया तुमने बड़भागी है !
—————————————————-
( यह लेख साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह के एडमिन साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी की स्मृति में आयोजित कार्यशाला दिनांक 11 दिसंबर 2021 के अवसर पर प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर तैयार किया गया है।)

Language: Hindi
604 Views
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