{ प्रेरक प्रसंग } ★ स्वास्वाभिमान ★
बात अंग्रेजों के समय की है । एकबार एक स्कूल का मुआयना करने के लिए एक अंग्रेज आफिसर महोदय आए हुए थे । स्कूल के निरीक्षण के दौरान अंग्रेज आफिसर स्कूल के प्रधानाचार्य जी से वार्तालाप कर रहे थे । अंग्रेज आफिसर अपनी बात को अंग्रेजी में कह रहे थे ,तो स्कूल के प्रधानाचार्य जी उनके बात का उत्तर संस्कृत में दे रहे थे । कुछ देर बाद अंग्रेज आफिसर ने संस्कृत में बोलना शुरू किया तब प्रधानाचार्य जी ने उनके बात का उत्तर अंग्रेजी में देना शुरू कर दिया । कक्षा में बैठे छात्र इस अनोखे वार्तालाप को तन्मय होकर सुन रहे थे । अंग्रेज आफिसर महोदय चले गए तब छात्रों ने उत्सुकतावश प्रधानाचार्य जी से पूछ लिया – ” श्रीमान् !यह क्या कारण था कि अंग्रेज आफिसर महोदय जब अंग्रेजी में बोल रहे थे तब आप उनके बात का उत्तर संस्कृत में दे रहे थे ,लेकिन जब उन्होंने संस्कृत में बोलना शुरू किया तब आपने उनकी बात का उत्तर अंग्रेजी में देना शुरू कर दिया ।”
प्रधानाचार्य जी ने कहा – ” बच्चों ! बात यहाँ पर स्वाभिमान का था । अंग्रेज महोदय जब अंग्रेजी में बोल रहे थे तब मेरा यह कर्तव्य था या यों कहें कि स्वाभिमान था कि मैं भी उनके बात का उत्तर अपनी मातृभाषा संस्कृत में दूॅ । लेकिन जब उन्होंने संस्कृत में बोलना शुरू किया तब मेरा भी यह कर्तव्य बनता था कि जब आप हमारी मातृभाषा की कद्र करेगें तब हम भी आपके भाषा का कद्र करेगें ,लेकिन जब स्वाभिमान की बात आएगी तब हम भी पीछे नहीं रहेगें । ”
आप हम सभी देशवासियों को इसी ” स्वाभिमान ” की आवश्यकता है ।
प्रस्तुति →
ईश्वर दयाल जायसवाल;
टांडा-अंबेडकर नगर ( उ.प्र. ) ।
( संपर्क नं. – 7408320246 )