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26 Sep 2024 · 1 min read

प्रेम

प्रेम (मदिरा सवैया)

प्रेम वही मधु पावन है जिससे नहिं स्वार्थ कभी टपके।
निर्मलता अति माधुर भावन कोमलता मृदुता चमके।
व्यापकता भरपूर यहाँ नहिं तुच्छ विचार कभी फटके।
अंत न छोर कहीं इसका अति मोहक रूप धरे चहके।

काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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