प्रेम के मनचले स्वर
डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त
प्रेम निःशुल्क दिखता है होता नहीं। प्रेम दो मनुष्यों में होता है और उन दोनो को ही उसकी कीमत चुकानी होती है, दोनों में से स्त्री पुरुष से अधिक प्रेम का आनंद और अनुभव करती है।
पुरुष पैसे या संपत्ति देकर प्रेम प्राप्त कर सकता है जबकि स्त्री, अपनी स्वतंत्रता, अपनी सुन्दरता शारीरिक रूप सौष्ठव इत्यादि देकर उसे प्राप्त करती है।
प्रेम में कोई जीत नहीं पाता यहां दोनों ही कुछ न कुछ खोते हैं और अन्ततः पीड़ित होते हैं।
प्रेम मृगमारिचिका जैसा होता है।
इतना सब कुछ होते हुए भी प्रेम प्रसाद पाने वाले को उसके ये गुण अवगुण दिखाई नहीं देते।
या तो उसकी बुद्धि पर प्रेम ऐसे परदा ढकता है कि वो उन अवगुणों को समझने लायक रहता ही नहीं।