💐💐प्रेम की राह पर-10💐💐
36-परिस्थिति जन्य दोष के विषय में एक वार्ता विस्मृत हो गई कि यह विघटनकारी भी है।तत्क्षण निर्णय लेने की दक्षता को यह परखता है।यदि निर्णय सत्यावरित हुआ तो निश्चय ही परिणाम मंगलकारी होगा।अन्यथा कोई युवा स्त्री यदि अपना वर एक काने व्यक्ति को चुन लें तो वह स्त्री कब तक उसमें दोष दर्शन करेगी।कोई नवपल्लव सूर्यरश्मि का विरोध कब तक करेंगे।उस नवीन स्त्री और पल्लव में एक समता नवीनता की है।परन्तु दोनों को इस व्यापार को स्वीकार करना होगा।अन्यथा एक जीवनभर मेरा पति काना है और दूसरा प्रकाश के अभाव में कुपोषित हो जाएगा।परिवर्तन संसार का नियम तो है, परन्तु स्वाभिमानी मनुष्य स्वाभिमान में परिवर्तन को बड़ी ही मुश्किल से स्वीकार कर पाता है।हे पंखुड़ी!मैं ऐसा ही था, मैंने बहुत चिन्तन कर अपने सन्देशों का प्रेषण किया तुम्हें।स्वाभिमान को ताक पर रखते हुए।तुम्हें यह स्त्री अन्य की तरह अधिक प्रचार न करेगी।परन्तु तुम्हारे जूते की चोट तो गूँजती है और थूक तो इतना थुका है कि मेरा रंग तो और अधिक निखर गया है।एक धावक की तरह मैं अभी भी दौड़ रहा हूँ उस बोझ के साथ कि मैं प्रेमदर्शन में अछूता रह गया।ईश्वर विषयक प्रेम में मैं अछूता नहीं हूँ।चूँकि उस मार्ग की प्राप्ति सभी को होती तो है परन्तु उस मार्ग पर स्व उन्नति विरले ही कर पाते हैं।तुम्हारे प्रति अपने प्रेम का प्रदर्शन मैंने तो किया परन्तु तुमने उसको कोई भाव नहीं दिया और नहीं कोई स्वेच्छिक दिलाशोपहार दिया।मुझे इन वार्ताओं का कोई रंज नहीं है।चूँकि मुझे अकेले रहने की आदत है अभी भी रह रहा हूँ।मुझे मित्र मण्डली चाहे वह स्त्री की हो और चाहे पुरूष की रत्ती भर भी स्वीकार नहीं है और स्त्री का तो नाम लिया है,स्त्री मण्डली से कोसों दूर हूँ।यह बड्डपन नही है मेरा।मैं बता रहा हूँ तुम्हें इन सभी बातों को अपना समझकर।मुझे किसी को इतनी सफाई देने की आवश्यकता नहीं है।मैं किसी को क्यों इतनी सफाई दूँ?मैं लोफ़र तो अभी भी नहीं।बाजारू भी नहीं हूँ।यदि कोई मनुष्य मुझसे पूछेगा तो मैं कह दूँगा कि हाँ मैंने एक लड़की से सीधे विवाह के लिए कहा था।इसे भी कह दूँगा की उसने अपने चरित्र की रक्षा के लिए ऑन स्पॉट मुझ पर थूक दिया और दिया वुडलैंड का जूता।उसे सब बता दूँगा कि जूते की मार तो अभी तक ग्लानि के रूप में ताजा है और थूक मेरे प्रथम प्रेम के अहंकार को तोड़ रहा है।परन्तु उस मारने वाले के के विषय में कोई उसका ख़ुद का अफ़सोस किस स्तर का है।कुछ भी पता नहीं चला।हे चंदा!तुम्हारे सभी धन्धे फलेंफूले।मैं यहाँ से बहुत कठोर होकर विदा लूँगा।अपने दिल को समझाऊँगा चल बच्चू कोई बात नहीं।यह उनकी हठधर्मिता है उन्होंने जूते के रूप में गुलाब देने का प्रयास किया और थूक के रूप में, मुख का यशस्वी परामर्श,जिसे सब जानते हीं हैं।इतनी भागमभाग जिन्दगी है मेरी कि सुबह से शाम तक अपने उसूलों पर जीता हूँ।उन उसूलों के साथ रोज जीता हूँ और मर जाता हूँ।परमार्थ क्या है और प्रतियोगिता क्या है।इसे मैं अच्छी तरह परिभाषित कर सकता हूँ।मुझे तुमसे अभी भी कोई दुःख नहीं है।सिवाय एक के।तुम अभी भी एक पके हुए मनुष्य का चरित्र जानना चाहती हो।ऐसे सौ लोग मिलकर भी मेरे चरित्र को नहीं देख पायेगें।।यह बहुत दुःखद है।यह अभी भी मुझे बहुत पीड़ित कर रहा है और तुम निर्दयी इसे तिलांजलि नही दे रही हो।तुम्हारे अन्दर स्वयं बात करने की हिम्मत तो है ही नहीं।टपोरियों से यह कार्य बख़ूबी निभा रही हो।हाँ यह भी समझती होगी कि कहीं सम्मोहक तो नहीं है।मुझे स्त्रियों से बात करना ज़्यादा पसन्द नहीं है।पर हाँ तुमसे कर सकता हूँ।यह है मेरी कहानी।यदि मेरे प्रेम का प्रयोग सफल न हुआ तो मुझे बड़ी कठोरता से इसे भूल जाना पड़ेगा।ज़रा सा भी भान यदि तुम अपने प्रयासों का कराते तो निश्चित मैं इसे सफल प्रेम तक पहुँचाता।परं तुमने किस दिशा में प्रयास किया, कैसे किया यह पता नहीं किस स्तर का रहा।मैं पारिवारिक मूल्यों से बहुत अधिक बँधा हूँ और तुम भी।गाँव के आदमी को यह कहते देर नहीं लगती कि बाहर रह रहे हैं।पहले से ही चक्कर चल रहा होगा और तुम मूर्ख क्या समझो।तुम बहुत निष्ठुर हो।कभी स्नेहक सोच लिया करो।हे!मोमबत्ती।तुमसे एक बार मिलूँगा।वह भी तुमसे बात करके।वह भी वृन्दावन।तुम्हें आने-जानेका किराया देंगें।चिन्ता न करना।तुम्हें स्पर्श नहीं करूँगा।फिर तुम्हारा स्नेह और इच्छा।ईश्वर तुम्हारा भला करे और करता रहे।एक दो पोस्ट और डालूंगा फिर लम्बी विदाई ले लूँगा।मैं किसी काम में आ सकूँ तो बताना।तुम्हारा तो सहयोग कर ही देंगे।मूर्ख लड़की।
©अभिषेक: पाराशर: