**प्रेम का रंग चढ़ा**
**प्रेम का रंग चढ़ा**
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अंग से जा अंग मिला
प्रेम का हर रंग चढ़ा।
देख कर परवान अदा,
दो कदम मैं और बढ़ा।
रोक पाया आप नहीं,
दर तिरे ही आन पड़ा।
जान ली है बात दिली,
चेहरा महबूब पढ़ा।
प्यार का है जाल बुना,
हुस्न का ताज जड़ा।
पार मनसीरत न हुआ,
बीच में ही नाव खड़ा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)