*** प्रीत की आस ***
सावन की अलमस्त ये भीगी भोर,
हरित है अवनि, कजरारा है अम्बर।
नभ समझे निज को तो कान्हा,
और वसुधा को राधा रानी।
रिझा रहा श्यामल चितचोर,
धरती का नाचे मन मोर।
न कभी मिल सका गगन धरा से,
फिर भी बांधी प्रणय की डोर।
– – रंजना माथुर दिनांक 04/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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