प्रीतम दोहावली
दोहे
तरु फूले विश्वास का, देता अद्भुत छाँव।
हरा-भरा हर मन करे, बसा प्रेम का गाँव।।
धोखा देकर हंँस रहे, दिल के बड़े ग़रीब।
भ्रमित लोग निज भूलकर, इंसानी तहज़ीब।।
जीवन के इस खेल में, हारे दंभी लोग।
लालच का जो लग गया, कैंसर जैसा रोग।।
मीत अभी तक जो मिले, छल से थे अभिभूत।
सीख मुझे पर दे गई, उनकी हर करतूत।।
दर्द समझकर जो मिले, प्रेमी सच्चा मीत।
आत्मसात मन से करो, हारो देकर जीत।।
सबकी अपनी भूमिका, सबके अपने रूप।
आप भला तो जग भला, सोच करे जग भूप।।
प्रीतम तेरे प्रेम को, समझे नेक सुजान।
दूर रहा अपना नहीं, निज से भी अनजान।।
#आर.एस.”प्रीतम”
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