*प्रिया किस तर्क से*
लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री
विषय प्रिया
शीर्षक नज़ाकत या उल्फत
विधा स्वच्छंद कविता
लजाती बलखाती इतराती शर्माती निकली हैं ।
आज रूप अनोखा दिखता है अरे ये तो मेरी प्रिया ही है।
श्रृंगार रस को समर्पित कुदरत के साथ जुड़ी , अलबेला अंदाज ।
खुशबू बिखेरती पल पल में अपनी जुल्फों की लतिकाओं को छेड़ती ।
हिरनी से नयन भरे भय संशय से धड़कते दिल से चाल मतवाली।
छेड़ा किसी ने तो देती गाली परहेज़ नहीं बिलकुल ये मेरी प्रिया निराली ।
अनुमान है आधा सच लेकिन समाधान नहीं।
पसीना बहा कर लिया गया निर्णय
पूर्णतया उचित भी नहीं ।
व्यक्तित्व विकास पर नारी शक्ति आज में व्यवस्थित कर्मशील कोमला अब नहीं ।
जल अग्नि वायु आकाश और धरा पर मात्र बसंत अब नहीं।
हैं फिर भी ये किसी न किसी की प्रेरणा हँस देती हर बात पर।
शिक्षा में पुरुष से आगे गुरु की क्षेणी में तो सर्वोच्च और प्रथम ।
नैसर्गिक रूप से लागू परिभाषा को करती स्थापित , अडिग स्वपरिभाषित हैं तो प्रिया।
तुम नारी शक्ति हो दिल पर कभी कभी बरसाती पत्थर हो , ये भिन्नात्मक आचरण कैसा कृपया।
कोमल हो कठोर नहीं व्यक्त हो मुखर नहीं विरोध करोगी कैसे सच कहना।
सत्य की स्थापना हेतु अनमाना व्यवहार लगता है अटपटा बोलो न।
प्रिया संबोधन सुनकर हृदय में अवधारणा होती स्थापित।
सौम्या अपराजिता निर- अहंकारी ममत्व से भरी एक अघोषित किलकारी ।
लजाती बलखाती इतराती शर्माती निकली हैं ।
आज रूप अनोखा दिखता है अरे ये तो मेरी प्रिया ही है।
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