प्रार्थना
प्रार्थना
********
हे प्रभु
हूँ झुका मैं चरणों में
लिए अपना शीश
बन्द कर सभी इन्द्रियाँ
गाऊँ बस यह गीत
बन के काले मेघ सा
आत्मा भारी
बरसुँ तेरे चरणों मे
होऊँ खाली।
लौटे भटके मन को
मिला जैसे ठौर
पता नहीं करूँ कैसे
प्रार्थना मैं और।
सागर से निकले कोई मोती
जिस लगन से
हे प्रभु लगा हूँ बस मैं
उस जतन से।
बुझ न जाए यह दिया
बेरहम हवा से
दर्द खत्म हो जाए
ऐसी दवा दें।
तुमने सब कुछ दे दिया है
आकाश,प्रकाश,तन,मन,प्राण
जल के भष्म बन तेरे लौ में
उड़ जाए द्वेष बनो मेरे त्राण।
*********************
शुभ्रा झा