प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा
दिप के माफ़ी अक्सर जलते रहो
महत्वाकांक्षा देख अग्र बढ़ते रहो
निःस्वार्थ भाव से हर काम करके
प्रतिपल निरंतर पथ पे चलते रहो
वक्त लगेगा अंधेरे का अभ्र छटेगा
जो चाहा वो अवश्य तुझें मिलेगा
प्रयत्न करना ना छोड़ उजेरे होंगे
वो मंजिल अवश्य ही तुझें मिलेगा
महत्वाकांक्षा की अदम्य लालसा
परस्पर आगे बढ़ने की जिज्ञासा
औरो के प्रति भावना शून्य न कर
निष्ठुरता कैसे दे ये ज्ञान पिपासा
इसका न छोर है ना कोई अंत है
आकाश की तरह ये तो अनंत है
एक पूरा हुआ तो सच मानो यार
दूजे महत्वकांक्षा का जन्म होत है।
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)