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19 May 2023 · 1 min read

प्रश्न-प्रश्न का प्रत्युत्तर किंतु

कहानी बनते जाती है
कविताएं बुनी आती हैं
संस्मरण समेटे जाते हैं
शब्द छांटे जाते हैं।

सांसें खींची जाती हैं,
प्राण थामे जाते हैं,
मन उत्पात करता है,
विप्लव दबाया जाता है।

रूप स्वजनित है,
श्रृंगार किया जाता है
विधाएं अनगिनत हैं,
दृष्टांत रचा जाता है।

राहें ही राहें अनजान,
मन भटका रहता है,
संकल्पों के झोले भारी,
खूंटी पे टांगे जाता है।

जीवन जिज्ञासा का पर्याय,
क्षय से नित मुकरता है,
प्रश्न-प्रश्न का प्रत्युत्तर किंतु,
मृत्यु के पश्चात मिलता है।

-✍श्रीधर.

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