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9 Nov 2024 · 1 min read

प्रभा प्रभु की

डॉ अरूण कुमार शास्त्री, एक अबोध बालक 😟🤣😟 अरूण अतृप्त।

तन्हाई तन्हाई तू मेरे हिस्से ही क्यों आई ।
जब मैने उससे ये पूंछा तो बोली मुझको पता नहीं।

फिर गुजरा समय धीरे धीरे, ऊपर वाले को दया आई ।
इक भोला भाला सा मासूम सनम उसने मुझको दे डाला ।

मैने जब धन्यवाद किया उस अदृश्य खुदा को समर्पित साक्षात सलाम किया ।
बोला सम्भाल कर रखना इसको अब के गलती की तो फिर रहना होगा तनहा तुझको।

मैं मन ही मन आनंदित था, प्रभु श्री आशीष से स्पंदित था ।

बोला प्रभु जी ये बतलाओ इस एक अबोध बालक को समझाओ।
पहले वाली में क्या कमी रही जो छोड़ मुझे वो चली गई।

प्रभु मुस्काए , लाल मेरे , फिर खुल के हंसे और तब बोले ।

वो तो मेरा एक सैंपल था , भक्तों को परख कर उनकी परीक्षा करना मतलब था।

मैं सोच रहा प्रभु आपका हास्य रहा, इस बच्चे के जीवन का सबसे दुखद वो दुखड़ा था ।

लेकिन मैं चुप ही रहा कहीं प्रभु जी नाराज़ न हो जो रूखी सूखी मिली मुझे वो भी कहीं परित्याग न हो ।

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