प्रभा प्रभु की
डॉ अरूण कुमार शास्त्री, एक अबोध बालक 😟🤣😟 अरूण अतृप्त।
तन्हाई तन्हाई तू मेरे हिस्से ही क्यों आई ।
जब मैने उससे ये पूंछा तो बोली मुझको पता नहीं।
फिर गुजरा समय धीरे धीरे, ऊपर वाले को दया आई ।
इक भोला भाला सा मासूम सनम उसने मुझको दे डाला ।
मैने जब धन्यवाद किया उस अदृश्य खुदा को समर्पित साक्षात सलाम किया ।
बोला सम्भाल कर रखना इसको अब के गलती की तो फिर रहना होगा तनहा तुझको।
मैं मन ही मन आनंदित था, प्रभु श्री आशीष से स्पंदित था ।
बोला प्रभु जी ये बतलाओ इस एक अबोध बालक को समझाओ।
पहले वाली में क्या कमी रही जो छोड़ मुझे वो चली गई।
प्रभु मुस्काए , लाल मेरे , फिर खुल के हंसे और तब बोले ।
वो तो मेरा एक सैंपल था , भक्तों को परख कर उनकी परीक्षा करना मतलब था।
मैं सोच रहा प्रभु आपका हास्य रहा, इस बच्चे के जीवन का सबसे दुखद वो दुखड़ा था ।
लेकिन मैं चुप ही रहा कहीं प्रभु जी नाराज़ न हो जो रूखी सूखी मिली मुझे वो भी कहीं परित्याग न हो ।