प्रबल
कुछ भी मिल जाये,
मुकद्दर फिर भी नहीं,
किस्मत बांझ है,
है तुम्हारे अपने,
किये धरे,
बस तुम भूल गये !
.
प्रबल फिर भी विचार,
निर्णय फिर.
समझ ले आती है,
उसी मुकाम पर.
जैसी दहलीज तैयार होती है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस
कुछ भी मिल जाये,
मुकद्दर फिर भी नहीं,
किस्मत बांझ है,
है तुम्हारे अपने,
किये धरे,
बस तुम भूल गये !
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प्रबल फिर भी विचार,
निर्णय फिर.
समझ ले आती है,
उसी मुकाम पर.
जैसी दहलीज तैयार होती है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस