प्रदूषित नदी
सदियों से बह रही नदियाँ शांत,
खेल रही थीं फूलों की बांधियाँ।
पवित्र गंगा, नर्मदा, यमुना और सरस्वती,
जल का उनके साथ था मिलन-जुलन।
परियों की रंगीन धरती पर,
चमक रहे थे ताज-महल, कुतुब मिनार।
जल था जीवन का प्रमुख स्रोत,
प्रकृति की अमूल्य देन, अद्वितीय छोट।
लेकिन आज नदियाँ पीड़ित हैं,
जल प्रदूषण के वज्र-साधित हैं।
उद्योगों की धुंधली स्मृति में,
बह रहे हैं विषैले जल-प्रवाह।
कारख़ानों से उठता है धुआँ,
इंजनों की चिलम से जहर आए।
बिना सोचे-समझे निकाल दिए गंदे पानी,
नदियों को काले ढेर में रख दिये।
मनुष्य ने बदल दी यह दुनिया,
वनस्पतियों ने आहार की अपेक्षा।
प्राकृतिक जल को किया है हमने विषैला,
नदियों की आहुति में मिला रहा समां।
जीवन का स्रोत है जल शुद्ध,
बिना इसके कैसे सम्भव होगा जीवन?!