दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम,जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं..!!
प्रदत्त पंक्ति- दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम,जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं।
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प्रेम मेरा तुम्हें लग रहा छल- कपट, प्रीत निज का भला तौलते क्यूँ नहीं।
दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम, जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं।।
प्रीति की यह गणित उलझनों से भरी, हल करो पंथ जीवन निखरता रहे।
पाल शंका हृदय में न बैठो शुभे, कर्म ऐसा न हो सब बिखरता रहे।
छोड़ संदेह को अर्क विश्वास का, वक्ष में तुम भला घोलते क्यूँ नहीं।
दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम, जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं।।
वक्ष में वेदनाएं लिए चल रहे, हर्ष भरकर हरो निज हृदय की व्यथा।
चाह रखते अगर राधिका प्रेम में, कृष्ण बनकर लिखो इस चरण की कथा।
हो गये जो ग्रसित आज कुण्ठा में तुम, खोलकर गाँठ उर बोलते क्यूँ नहीं।
दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम, जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं।।
प्रीति की बाँसुरी प्रेम से ही बजे, राधिका जब सुने मुग्ध होती सदा।
आस्था नेह से दूर होने लगे, तब प्रणय पन्थकी छुब्ध होती सदा।
चाहते प्रीति चातक सदृश ही मिले, बूँद स्वाती हृदयँ मोलते क्यूँ नहीं।
दर्द की भावना से ग्रसित मीत तुम, जिंदगी की गिरह खोलते क्यूँ नहीं।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’