प्रथम स्वाधीनता समर
प्रथम स्वाधीनता समर अाज भी,
घर घर मुँह जवानी है।
दस मई सन सन्तावन की गाथा,
गौरव पूर्ण कहानी है।
सन्तावन के पूर्व भी लडे़ पर,
कहा गया हैं दंगाई।
इतिहासकार भी करें हजूरी,
अंग्रेजो की थी चौधराई।
सैकड़ो विद्रोह हुए लेकिन,
लिखी नहीं कोई कहानी है—–
संयासी- फकीर बंगाल बिहार में,
चाहे मरूदू पांडयन का विद्रोह।
पोलिगारो,कोल ,संथाल हो,
चाहे सिद्धू- कानू उडीसा विद्रोह।
ऊँच- नीच और जात- पा़त की,
मिलती नही निशानी है——–
इतिहासकारो से आगे बढ़कर,
साहित्यकारो ने सहयोग किया।
गदर के फूल,झॉसी की रानी,
क्रॉति गाथा का गान किया।
नारी शक्ति का देख जंग,
कहते अबला नही मर्दानी है—–
नानासाहिब,कुँअर सिह,तात्या,
बहादुर झॉसी की रानी।
गिने- चुने ही जान सके है,
अनजान रहे बहुत बलिदानी।
हिन्दू-मुसलिम ने मिलजुल दी,
आजादी हित कुर्बानी है ——
मातादीन,गंगूमेहतर,मजनू शाह,
भवानी पाठक से अनेक बलिदानी।
धीरजनारायण,बेगम हजरत महल,
झलकारी कोरी और देवी चौधरानी।
इन वीरों की गाथा हो गई धुधली,
जनश्रुतियों में ज्यादा मिलती है——
सन अठारह सौ से सुलगी,
आजादी की चिनगारियॉ।
सन्तावन में धधक उठीं थी,
स्वाधीनता की जनक्रॉतियॉ।
लोकगीत ,स्मृति,कथायें,
कहती और सुनाती है——
राजेश कौरव ” सुमित्र”